भारत में उपभोगताओ के अधिकारों के संरक्षण हेतु उपभोगता संरक्षण अधिनियम १९८६, बनाया गया है जिसके अंतर्गत यदि किसी व्यापारी द्वारा अनुचित पध्दति के प्रयोग करने से यदि आपको हानि हुई है अथवा खरीदे गये सामान में यदि कोई खराबी है या फिर किराये पर ली गई सेवाओं में कमी पाई गई है या फिर विक्रेता ने आपसे प्रदर्शित मूल्य या लागू कानून द्वारा या इसके मूल्य से अधिक मूल्य लिया गया है। इसके अलावा यदि किसी कानून का उल्लंघन करते हुये जीवन तथा सुरक्षा के लिये जोखिम पैदा करने वाला सामान जनता को बेचा जा रहा है तो आप उसके खिलाफ अदालत में शिकयत दर्ज करा सकते है| परन्तु अदालत में जाने से पहले एक क्न्ज्युमर नोटिस दुसरे पक्ष को देना जरुरी है| यह एक ऐसा पत्र होता है जिसे उपभोगता उस उत्पाद या सेवाओ के सम्बन्ध में हुई समस्याओ को बताता है और आवश्यक भुगतान माँगता है| इसके बाद भी यदि 15 दिनों में दुसरे पक्ष से कोई जवाब नहीं आता है या वो भुगतान के लिए तैयार नहीं होता है तब उपभोगता अदालत में मुकदमा कर सकता है| इस नोटिस में परिवादी का नाम, पता, उसके द्वारा माँगी गई राहत आदि होना चाहियें| यह नोटिस स्पीड पोस्ट या रजिस्टर्ड पोस्ट से भी भेजा जा सकता है| क्न्ज्युमर नोटिस देना लाभकारी भी साबित हो सकता है क्यूंकि यदि दुसरे पक्ष ने अपनी गलती मान ली और मुआवजा देने को राज़ी हो गये तो आपको क़ानूनी कार्यवाही करने से मुक्ति मिल जाएगी| क्न्ज्युमर नोटिस के नियम के पीछे यही उद्देश्य है की यदि कोई विवाद अदालत के हस्ताक्चेप के बिना निपटाया जा सकता है तो उसे अदालत तक न लाया जाये साथ ही साथ यह दुसरे पक्ष को मुकदमा या क़ानूनी कार्यवाही होने की संभावना की सुचना भी प्रदान करता है|
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